मनु भाखर, मनिका बत्रा और मेरी कॉम
कठुआ में हुई घटना हो या उन्नाव, पिछले कई दिनों से गली-चौराहों में इन्हीं चंद नामों की चर्चा है.
आठ साल की घुड़सवारी करने वाली वो बच्ची जिसकी बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई, पता नहीं उन नन्ही आंखों में बड़े होकर क्या बनने का सपना होगा.
एक ओर जहाँ देश भर में औरतों की स्थिति को लेकर माहौल ग़मग़ीन बना हुआ है, वहीं, कोसों दूर ऑस्ट्रेलिया में कॉमनवेल्थ खेलों में अपने बेहतर प्रदर्शन से भारतीय महिलाओं को देखकर उम्मीद की एक किरण ज़रूर नज़र आती है.
एक ओर जहाँ 16 साल की शूटर मनु भाखर ने अपने पहले ही राष्ट्रमंडल खेलों में 10 मीटर एयर पिस्टल में गोल्ड जीता, वहीं, उनसे लभगभग दोगुनी उम्र की बॉक्सर मेरी कॉम ने भी 35 साल की उम्र में गोल्ड कोस्ट में पहला कॉमनवेल्थ मेडल जीता.
मेरी कॉम

महिलाएं आधी आबादी हैं...

बचपन में पंजाबी गायक गुरदास मान का एक गीत था जो बहुत सुना जाता था, "दिल होना चाहिदा जवान, उम्रां च की रखिया."
यानी दिल जवान होना चाहिए, उम्र में क्या रखा है. अब सोचकर लगता है जैसे ये बोल मेरी कॉम के लिए ही लिखे गए हों.
ऑस्ट्रेलिया में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में भारत ने कुल 66 मेडल जीते जिसमें 26 गोल्ड मेडल हैं.
अगर महिलाएं आधी आबादी हैं तो पदकों में भी लगभग आधे पदक महिलाओं ने जितवाए हैं- 13 गोल्ड पुरुषों ने, 12 गोल्ड महिलाओं ने और एक गोल्ड मिक्स वर्ग में.
मीराबाई चानू

40 किलोमीटर की साइकिल दौड़

मणिपुर से लेकर वाराणसी की गलियों और झज्जर के गाँव तक से आने वाली इन सभी खिलाड़ियों की संघर्ष की अपनी अपनी कहानी रही है.
कोई ग़रीबी की लकीर को पार करते हुए यहां तक पहुंची है तो कोई अपने दम पर जेंडर के सारे पूर्वाग्रहों को तोड़ते हुए आगे बढ़ी है.
गोल्ड कोस्ट में पहले ही दिन भारत को पहला मेडल दिलाने वाली वेटलिफ़्टर मीराबाई चानू रोज़ाना कोई 40 किलोमीटर साइकिल चला कर ट्रेनिंग करने पहुंचा करती थीं, लोहे के बार नहीं मिलते तो बांस के बार से ही प्रैक्टिस किया करतीं.
वहीं मणिपुर के एक ग़रीब परिवार में जन्मी मेरी कॉम ने जब बॉक्सर बनने की ठानी तो लड़के अकसर उन पर हंसा करते थे, महिला बॉक्सर जैसा कोई शब्द उनकी डिक्शनरी में शायद था ही नहीं.
ख़ुद उनके अपने माँ-बाप को चिंता थी कि बॉक्सिंग करते हुए आंख-कान फूट गया तो शादी कौन करेगा. 
दिव्या काकरन

मर्दों का खेल पहलवानी

मणिपुर से आने वाली मेरी कॉम और सरिता देवी जैसी बॉक्सरों ने जहाँ बरसों से अपने हिस्से की लड़ाई लड़ी है, वहीं, हरियाणा के गाँव-मोहल्लों में अलग ही दंगल जारी था- टीशर्ट और शॉर्ट्स पहन मर्दों का खेल पहलवानी करती लड़कियाँ.
कांस्य पदक जीतने वाली 19 साल की दिव्या काकरन तो बचपन में गाँव-गाँव जाकर लड़कों से दंगल किया करती क्योंकि लड़कों से लड़ने के उसे ज़्यादा पैसे मिलते.
बदले में गाँव वालों के ताने ज़रूर मिलते थे लेकिन दिव्या को मिलने वाले सोने और कांसे के तमगों ने अब उनके मुँह बंद कर दिए हैं.
फ़ोगट बहनों से होते हुए ये सफ़र साक्षी मलिक तक ने तय किया है.
एक इंटरव्यू में साक्षी बताती हैं कि जब उन्होंने कुश्ती शुरू की थी तो प्रतियोगिताओं में खेलने के लिए उनके साथ लड़कियाँ ही नहीं होती. 
पूनम यादव

पदक नहीं उम्मीदों का भार

वहीं, वाराणसी की पूनम यादव ने जब 69 किलोग्राम वर्ग में 222 किलोग्राम उठाकर कॉमनवेल्थ में गोल्ड मेडल जीता तो वो एक तरह से अपने पूरे परिवार की उम्मीदों का भार अपने कंधों पर लेकर चल रही थी.
तीन बहनें, तीनों वेटलिफ़्टर बनना चाहती थी लेकिन पिता की आर्थिक क्षमता इतनी ही थी कि वो सिर्फ़ एक ही बेटी का खर्चा उठा सकते थे.
22 साल की पूनम की तरह महिला खिलाड़ियों के जुझारूपन और जज़्बे के किस्से भरे पड़े हैं.
कॉमनवेल्थ के इतिहास में भारत को महिला टेबल टेनिस में पहला गोल्ड मेडल दिलाने के बाद एक दूसरे से लिपटी खिलाड़ियों की तस्वीर अपने आप में बहुत कुछ कह जाती हैं.
इन महिला खिलाड़ियों ने मेडल तो जीते है, रिकॉर्ड भी बनाए. 
मनिका बत्रा

परिवार का बेहतर साथ

मनु भाखर और तेजस्विनी सावंत ने निशानेबाज़ी में राष्ट्रमंडल रिकॉर्ड बनाया तो 22 साल की मनिका बत्रा टेबल टेनिस में सिंगल्स में गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं.
मनिका ने भारत को एक नहीं चार-चार मेडल दिलाए. पुरुषवादी समाज और सोच तो आज भी खेल के मैदान और बाहर हावी है.
तस्वीर पिक्चर पर्फ़ेट तो नहीं लेकिन पहले के मुकाबले मैदान पर उतरने वाली महिलाओं को घर पर पहले से कहीं ज़्यादा समर्थन मिल रहा है.
17 साली की मेहुली घोष ने गोल्ड कोस्ट में शूटिंग में रजत पदक जीता है लेकिन उनके माँ-बाप ने तब उनका साथ दिया जब वो एक हादसे के बाद 14 साल की उम्र में डिप्रेशन से जूझ रही थीं.
अपनी बेटी के हुनर को पहचानते हुए मेहुली के माँ-बाप उनके पूर्व ओलंपिक चैंपियन जयदीप करमाकर के पास ले गए. यही मेहुली की ज़िंदगी का टर्निंग प्वॉइंट था.
मेहुली घोष

तोड़ के सारे बंधन

17 साल की ही मनु भाखर के पिता ने तो बेटी के लिए मरीन इंजीनियर की अपनी नौकरी तक छोड़ दी और मनु की माँ सुमेधा के साथ मिलकर स्कूल चलाते हैं.
जिस दिन मनु पैदा हुई उसी दिन उनकी माँ का संस्कृत का पेपर था लेकिन वो पेपर देने गईं. यही जुझारूपन से लड़ने का जज़्बा सुमेधा ने अपनी बेटी को भी सिखाया है.
वहीं, साल 2000 का वो किस्सा याद आता है जब महाराष्ट्र की शूटर तेजस्विनी सावंत उम्दा विदेशी राइफ़ल के लिए पैसे नहीं जुटा पा रही थीं और उनके पिता ने बेटी के लिए एक-एक दरवाज़ा खटखटाया था.
और जब मेरी कॉम के बेटे के दिल का ऑपरेश्न था तो उनके पति ने ही बेटे को संभाला ताकि वो चीन में एशिया कप में खेले और जीतकर आए.
इन सभी महिला खिलाड़ियों ने भी अपने हौसले और हिम्मत से बड़ी-बड़ी मुश्किलों को मात दी- फिर वो पैसों की तंगी हो ख़राब सुविधाएँ.
अंजुम मौदगिल और तेजस्विनी सावंत 

भारत की वंडरवुमन

साइना नहवाल और पीवी सिंधु को भले ही बचपन से ही बेहतर ट्रेनिंग सुविधाएँ मिलीं लेकिन कुछ कर गुज़रने की आग उन्हें बैडमिंडन में ऊँचाइयों तक ले गई.
जिस देश में स्क्वैश को ठीक से समझने वाले लोग भी न हों, वहाँ दीपिका पालिकल और जोशना चिनप्पा ने राष्ट्रमंडल में लगातार दूसरी बार पदक जीत दिखाया है.
यहाँ पूर्व ओलंपिक चैंपियन कर्णम मलेश्वरी की वो बात याद आती है जब उन्होंने कहा था कि "सोचिए अगर रोज़ 40 किलोमीटर साइकिल चलाकर, बिना भरपूर खाने और डाइट के एक मीराबाई चानू यहाँ तक पहुँची हैं तो सोचिए हम सब सहूलियतें दें कि कितनी मीराबाई पैदा हो सकती हैं."

मेरी कॉम जैसे खिलाड़ी तो अभी से इस सपने को साकार करने में लगी हैं- उनका सपना कम से कम 1000 मेरी कॉम पैदा करना है.
स्क्वॉश खिलाड़ी दीपिका पल्लीकल

खेलने का फ़ैसला

इन्हीं में से कोई हिना सिद्धू डेंटल सर्जन भी है तो क्रिकेट टीम की हिस्सा शिखा पांडे फ्लाइट लेफ़्टिनेंट भी. और कई वर्ल्ड रिकॉर्ड भी अपने नाम किए हैं.
और ये महिला खिलाड़ी न सिर्फ़ बिंदास अपने स्टाइल में खेलती हैं बल्कि मैदान से बाहर भी बिंदास वही करती हैं जो वो करना चाहती है.
फिर वो सानिया मिर्ज़ा के अपनी पसंद के कपड़े पहनकर खेलने का फ़ैसला हो या पहलवान दिव्या का गाँव के लड़कों से दंगल कर अपनी धाक जमाने की बात हो.
या स्क्वैश चैंपियन दीपिका पालिकल का फ़ैसला कि जब तक महिलाओं और पुरुषों को एक जैसी ईनामी राशि नहीं मिलती वो नेश्नल चैंपियनशिप में नहीं खेलेंगी.
ये भारत की अपनी वंडरवुमेन है. इन्होंने मैच ही नहीं लोगों के दिल भी जीते हैं.
साइना नेहवाल, पीवी सिंधू



They walked in with grace, wearing a soft smile on their face. Snatch, clean and jerk! As they added gold to their name. They bowed down with modesty, waved at the hostile crowd and walked out with that same smile on their face. 
In a course of just 24 hours, the word 'Chanu' turned into a household name in India. And the reason? Well, two Manipuri athletes - Saikhom Mirabai Chanu and Sanjita Chanu - acquired top podium in the ongoing Commonwealth Games 2018 at Gold Coast in Australia. 
On an early Thursday morning in India, the nation woke up to what would only be described as an overwhelming news. Tri colours flew high and with grace as Manipur's Mirabai scripted six records in her six attempts combining snatch and clean and jerk to lift the gold in women's 48 kg category.
Mirabai, who scripted her first record in the 2018 event by successfully lifting 80 kg in snatch, penned her third record in the next five minutes by lifting 86 kg in her third attempt. The lift put her ahead of her competitors as they headed in for the 'clean and jerk'. In clean and jerk, she once again etched her name in history books as she lifted 103 kg to break Commonwealth Games record and then registered her personal best in her final attempt as Chanu lifted 110 kg.
The 23-year-old Imphal girl had won silver in the 2014 edition of Commonwealth Games. Two years later, she scripted national record by lifting a total of 192 kg in the selection trials for Rio Olympics. With high hopes rested on her shoulders, Mirabai left for Brazil, but was stupefied in the grandest stage of them all as she attempted a below-par 82 in snatch and failed to clear clean and jerk in all her trails.
Rising from the heartbreak of her Olympics debacle, Mirabai won the Weightlifting World Championships last year, becoming the first Indian lifter since Karnam Malleshwari in 1995 to achieve so. 
While India still lived in the hungover phase of Mirabai's historic feat at Gold Coast, Sanjita struck gold exactly 24 hours later as the nation once again opened their eyes to yet another glory. Another Manipuri girl bagged top honour in weightlifting, this time in the women's 53 kg category.
After successfully lifting 80 kg in her very first attempt, Sanjita scripted Commonwealth Games history when she attempted 84 kg in her third opportunity in snatch. In clean and jerk, it, however, wasn't an easy start for the Manipuri as she failed to lift 112 kg. Although, in her third attempt she successfully attempted 108 kg to assure herself of the top-podium finish. This was her second gold in Commonwealth Games, her first came in 2014 edition when she finished atop in 48 kg category.
While one may wonder as to whether the two share a relation with 'Chanu' being a common part of their name, well the answer is no. The word in Manipuri is assigned to unmarried women with it signifying 'Miss'. However, the sport does bring the two together. In fact, Mirabai and Sanjita competed in the same category in the 2014 edition of CWG and it was Sanjita who had bagged the gold medal, while Mirabai settled for silver.
Sanjita, however, had a lot of ups and downs on her way to Gold Coast glory. The Glasgow CWG gold medalist saw a dip in her form as she failed to qualify for the Olympics. The winner of two Commonwealth Championships, before CWG 2014, was overlooked for the Arjuna Award. 


  























4 अप्रैल से ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में शुरू होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए भारतीय बास्केटबॉल टीम के खिलाड़ी भी तैयार है। वैसे तो बास्केटबॉल में मेडल जीतना भारतीय टीम के लिए इस बार भी पिछली बार की तरह टेढ़ी खीर साबित होने वाली है, लेकिन टीम के हौसले बुलंद है।
यह दूसरा मौका होगा जब बास्केटबॉल को कॉमनवेल्थ गेम्स का हिस्सा बनाया गया है। इससे पहले 2006 के कॉमनवेल्थ जो ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में खेला गया था उसमें बास्केटबॉल को शामिल किया गया था। 
2006 में ऑस्ट्रेलिया की महिला और पुरूष दोनों टीमों ने इस खेल में गोल्ड जीता था और इस बार 2018 के राष्ट्रीमंडल खेलों में एक बार फिर ऑस्ट्रेलिया ने इस खेल को शामिल किया है।
2006 की बात करें तो इस खेल में दूसरे नंबर पर इंग्लैंड की टीम रही थी जिसे सिल्वर और तीसरे नंबर पर न्यूजीलैंड की टीम को रजत पदक मिला था।
जब 2018 में ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और न्यूजीलैंड अपने-अपने पदक बचाने उतरेगी तब भारतीय टीम के पास नया इतिहास रचने का मौका होगा हालांकि यह आसान नहीं होगा।
2006 में भारतीय पुरुष टीम अपने सारे मैच हारी थी तो वहीं महिला टीम को ग्रुप में तीसरा स्थान मिला था।
इस खेल में भारतीय टीम में यादविंदर सिंह एकमात्र ऐसे खिलाड़ी हैं जो अपने दूसरे राष्ट्रीमंडल खेलों में भाग ले रहे हैं और उन्हें ही पुरुष टीम का कप्तान भी बनाया गया है। महिला टीम को शारान लिमय हेड करेगी।
 इस बार भारत की दोनों टीमें ग्रुप बी में है।
पुरुष टीम का पहला मुकाबला कैमरुन के साथ होगा 5 अप्रैल को होगा। दूसरा मुकाबला 7 को इंग्लैंड के साथ तो वहीं तीसरा मुकाबला स्कॉटलैंड के साथ 8 अप्रैल को होगा।
महिला टीम की 5 अप्रैल को ही पहली भिड़ंत जमैका से होगी। दूसरे मैच में मलेशिया से 7 अप्रैल को और तीसरे मैच में न्यूजीलैंड से 8 अप्रैल को सामना होगा।
इस बार 8 टीमें इस खेल में हिस्सा ले रही है।  पुरूष टीम फिलहाल रैंकिंग में 62वें स्थान पर है और महिला टीम 45वें स्थान पर।


Set to make their debut at next month's Commonwealth Games (CWG) in Gold Coast (Australia), teenagers Manu Bhaker and Srihari Nataraj are two prodigious talents who emerged as champions from the Khelo India School Games, government's ambitious flagship programme.



While Manu shot her way to a gold in women's 10m Air Pistol with a score of 241.1 in the finals to rewrite her own final national record of 240.5 set at the National Shooting Championships in December last year, Srihari broke his own 100-meter backstroke national record while winning six gold and a silver medal at the Khelo India School Games.




With the popularity of Indian women’s cricket team, slowly but steadily, rising and the women cricketers themselves becoming popular, the Indian cricket board has decided to organize exhibition matches for women during the upcoming season of Indian Premier League. While the board hopes that these matches will lay the groundwork for women’s IPL, Mithali Raj, a legend in her own might, has her reservations.

“It’s important to have the pool of players, who will be qualified to play IPL kind of a league. You can feed in any domestic (players) but then there will be a stark difference between an international player and domestic player. It might go against promoting women’s cricket,” the highest-run getter in women’s cricket said. While Mithali had pointed out some very strong points, many domestic cricketers, and coaches associated with women’s teams begged to differ as they believe “IPL would be a boon for women’s cricket.” 



Today's #sportswomaniya topic is 'Communication'! So I thought I will 'Communicate' with you in a little different way!  #mbicem #finalproject