गरीब पिता ने चाय बेचकर उसके सपनों को दी ताकत, आज वो विश्व में कर रही है देश का नाम रौशन

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आज की दुनिया में महिलाओं द्वारा बनाये जा रहे नित नए कीर्तिमानों से कौन परिचित नही है, महिलाये तो हमेशा से सृजनात्मकता की धुरी रही है  बस फर्क सिर्फ इतना है की हमारे पुरुष प्रधान माने जाने वाले समाज को समझ में थोडा देरी से आता है। प्राचीन काल में ही नहीं आधुनिक समाज में भी महिलाओं ने अपने दम पर अपनी पहचान बनाई है।  ज्यादा दूर मत सोचिये क्रिकेट जगत को ही ले लीजिये हमेशा से एक धारणा बना दी गयी थी कि लड़कियां क्रिकेट नहीं खेल सकती क्योंकि उसमे शारीरिक क्षमताओं की आवश्यकता अधिक होती है लेकिन ऐसा मानने वालो को करारा जवाब दिया है किक्रेटर एकता बिष्ट ने। 

हाल में ही इंग्लैंड में हुए महिला क्रिकेट विश्वकप में पाकिस्तान के खिलाफ अपने शानदार प्रदर्शन और क्षमताओं के दम पर भारत को जीत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली उत्तराखंड की शेरनी, पहाड़ों की शान अल्मोड़ा में 8 फरवरी, 1986 को खजांची मोहल्ले के साधारण परिवार में जन्मी एकता बिष्ट उदाहरण है उन लोगों के लिए जो महिलाओं की क्षमताओं पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं। उत्तराखंड राज्य से भारतीय क्रिकेट टीम में शामिल होने वाली पहली खिलाड़ी एकता ने इंग्लैंड में हुए महिला वर्ल्डकप के  11वें लीग मैच में भारत को जीत दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान ही नहीं दिया बल्कि पाकिस्तान के 5 अहम विकट चटकाकर मैन ऑफ़ द मैच का खिताब भी अपने नाम किया।

एकता की सफलता के पीछे कोई चमत्कार या बहुत बड़ा सपोर्ट नहीं था लेकिन अगर कुछ था तो वो था एकता का क्रिकेट के प्रति जुनून, मेहनत और अपने खेल पर विश्वास।  क्रिकेट के चाहने वाले अब बाएं हाथ की इस गेंदबाज़ से बखूबी वाकिफ हैं लेकिन बहुत कम लोगों को इस 31 वर्षीय स्पिनर के संघर्ष की कहानी के बारे में पता है। एकता के पिता कुंदन लाल बिष्ट भारतीय सेना में हवलदार के पद पर कार्यरत थे। कुंदन लाल बिष्ट के परिवार में एकता के अलावा दो और बच्चे व पत्नी है। साल 1988 में जब सेना से रिटायर हुए तो महज  1500 रु पेंशन मिला करती थी।  अपने परिवार का पालन 1500 रु में करना बहुत मुश्किल का काम था।  इसलिए उन्होंने अपनी कमाई बढ़ाने और बेटी के सपनों को उड़ान देने के लिए अल्मोड़ा में चाय की दुकान खोली।

एकता के पिता को शुरू से ही उम्मीद थी कि बेटी हमारा नाम रोशन करेगी।  एकता महज पांच वर्ष की उम्र से घर के आँगन को पिच बना कर प्लास्टिक बॉल से क्रिकेट खेलती आ रही है।  

एकता बचपन से ही एक जिम्मेदार लड़की रही है वे अपने खर्चो में कटौती करके काफी बचत किया करती थी। साधनों के अभाव में भी एकता ने क्रिकेट के प्रति जज्बे को कम नहीं होने दिया और फर्श से अर्श का सफर तय किया। 

साल 2006 तक एकता उत्तराखंड की तरफ से घरेलू क्रिकेट में अपनी प्रतिभा का जलवा बिखेरती रहीं लेकिन जब एकता को लगा की उत्तराखंड अपनी टीम बनाने में असक्षम दिख रहा है तो उन्होंने पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश का रुख कर लिया क्योंकि एकता जानती थी कि खिलाड़ी में खेल के प्रति निष्ठा होना जरूरी है क्योंकि खेल भावना राज्यों की सीमाओं से बढ़कर होती है। साल 2010 में जब एकता का चयन इंडिया एकी महिला क्रिकेट टीम के लिए हुआ तो उन्हें मुबई जाने के लिए दस हजार रुपये की जरुरत थी। लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी सुदृढ़ नहीं थी कि दस हजार रुपयों की व्यवस्था हो पाये। 

एकता की भी जिद थी कि चाहे कुछ भी हो जाए वह मुंबई जाएगी और भारतीय टीम का हिस्सा बनेगी। एकता की ज़िद को देखते हुए उसके मां- पिता के पास मुश्किल से दो हजार रुपये की व्यवस्‍था हो पाई। ऐसे में एकता की मां ने तीन हजार रुपये उधार लिए और बाकी के पांच हजार रुपये एकता के कोच लियाकत अली ने दिए। इस तरह पैसों की व्यवस्था होने पर एकता चल पड़ी मुंबई की ओर।  आश्चर्य की बात है कि जिस वर्ष भारत की पुरुष क्रिकेट टीम ने ICC वनडे विश्व कप अपने नाम किया, उसी साल 2011 में एकता ने भी भारतीय महिला क्रिकेट टीम में अपनी जगह सुनिश्चित कर इतिहास रच दिया। उस सफर के बाद एकता ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और सफलता की सीढ़ियां चलती गई।

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