वक़्त और गरीबी की हालात से पीड़ित कुश्ती की यह
राष्ट्रीय खिलाड़ी आज ठेले पर पोहा बेचने को मज़बूर है। देश व समाज के लिए इससे बड़ा
दुर्भाग्य और क्या हो सकता जो इन प्रतिभाशाली चेहरों को उचित संसाधन मुहैया कराने
में असमर्थ है।
संघर्ष की यह कहानी है छत्तीसगढ़ के रायपुर की
रहने वाली शारदा यादव नाम की एक लड़की की। ग़ौरतलब है कि शारदा 2013 में जूनियर और 2014 में सीनियर लेवल की कुश्ती नेशनल
चैम्पियनशिप में भाग ले चुकी है। इसके अलावा 2015
में हुए राज्यस्तरीय नेशनल स्कूल गेम्स में भी वह छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व कर
चुकी है।
वक़्त की मार ने शारदा के सर से पिता का भी शाया
छीन लिया। शारदा अपनी मां के साथ आस-पड़ोस के घर में काम कर कुछ पैसे इकट्ठा किया
और फिर सड़क किनारे एक पोहे का ठेला लगायी। आज उनका पूरा परिवार इसी पोहे पर आश्रित
है।
शारदा का एकमात्र सपना है ओलिंपिक में
देश का प्रतिनिधित्व करना और पदक जीतना। किन्तु गरीबी के आगे बेबस शारदा को समुचित
डाइट भी नहीं मिल पाती। घर और ठेले में काम करने के चलते वह रोजाना चार घंटे ही
प्रैक्टिस कर पाती है। शारदा के कोच की माने तो वह एक बेहतरीन खिलाड़ी है और उसमें
काफी पोटेंशियल है। अगर सही संसाधन मुहैया कराया जाय तो शारदा सझमुझ देश के लिए
पदक ला सकती है।
ख़ैर यह कहानी सिर्फ एक शारदा तक ही सीमित नहीं
है ना जाने देश में ऐसे कितने प्रतिभावान खिलाड़ी हैं जो ऐसी हालातों से जूझ रहें
हैं। अगर सही वक़्त पर उन्हें समुचित सहायता मुहैया नहीं कराया जाता तो यह देश का
दुर्भाग्य होगा।
0 comments:
Post a Comment